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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : देवराज इन्द्र का राम के लिए रथ भेजना।

रामायण : Episode 74

देवराज इन्द्र का राम के लिए रथ भेजना।

लंका के महल में रानी मन्दोदरी रावण के घावों पर लेप लगाती हैं। रावण दम्भपूर्वक कहता है कि यदि सूर्यास्त के कारण युद्ध विराम न होता तो आज उसके हाथों राम लक्ष्मण की मृत्यु निश्चित थी। मन्दोदरी कहती हैं कि उसने सारथी से सुना है कि आज युद्ध में आप मूर्च्छित हो गये थे। मन्दोदरी रावण से पूछती है कि यदि वो यह युद्ध कीर्ति और यश के लिये कर रहे हैं तो क्या उनकी यशगाथा कहने के लिये असुर जाति जीवित बचेगी। यदि वो यह युद्ध विजय के लिये कर रहे हैं तो उसकी विजय पताका उठाने के लिये कोई जीवित बचा है। इस युद्ध में भाई, पुत्र, पौत्र सभी मारे जा चुके हैं। मन्दोदरी एक बार फिर राम से सन्धि कर लेने की बात कहती है ताकि लंका में जो जीवित बचे हैं, उन्हें बचा लिया जाये। राम की छावनी में भी युद्ध स्थिति पर मंत्रणा होती है। सभी अगले दिन भीषण संग्राम होने का आकलन करते हुए रणनीति तैयार करते हैं। सुग्रीव छावनी में रात्रि पहरा बढ़ाने का निर्णय लेते हैं। वह जानते हैं कि रात्रिकाल में निशाचरों की मायाशक्ति बढ़ जाती है। निर्णीत अवस्था में पहुँच चुके युद्ध की अन्तिम रात्रि बहुत भारी पड़ती है। राम, रावण, मन्दोदरी और सीता किसी की आँखों में नींद नहीं है। अगले सूर्योदय के साथ रणभेरी बजती है। युद्धभूमि में जाते रावण के माथे मंगल तिलक लगाने के लिये मन्दोदरी आरती का थाल लेकर आती है। उसके हाथ काँपते हैं। आरती का दिया बुझ जाता है, थाल धरती पर गिर जाता है। रावण शिवलिंग के समक्ष जाकर कहता है कि महाकाल इन अपशगुनों के द्वारा उसे भयभीत करना चाहता है ताकि वह राम के समक्ष झुक जाये किन्तु वह अपनी शक्तियों के अहंकार को यूँ नहीं टूटने देगा। देवलोक में देवतागण चिन्तित हैं कि पैदल नंगे पाव राम किस प्रकार रावण का सामना करेंगे। भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। वह इन्द्र से कहते हैं कि आज रावण के लिये मारकेश की दशा है। इन्द्र अपना दिव्य रथ राम की सेवा में भेजें। इन्द्र की आज्ञा पर सारथी मातलि दिव्य रथ लेकर राम के पास पहुँचता है। मातलि रथ की विशेषताऐे बताता है और राम से इसे स्वीकार करने का निवेदन करता है। राम इन्द्र के रथ पर आरूढ़ होकर रणभूमि के मध्य में जाते हैं। रावण राम को इन्द्र के रथ पर आरूढ़ देखकर परेशान होता है। वह इन्द्र को ललकार कर कहता है कि राम से निपटने के बाद वह इन्द्र का भी लेखाजोखा करेगा।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sage Vishwamitra - मुनि विश्वामित्र

मुनि विश्वामित्र रामायण में एक महत्वपूर्ण चरित्र हैं। वह एक प्राचीन ऋषि थे और महाराज जनक के दरबार में राजगुरु के रूप में सेवा करते थे। विश्वामित्र ऋषि की खासता थी, वे बहुत ही तेजस्वी थे और शक्तिशाली तपस्वी ऋषि माने जाते थे। उन्होंने अपने तपस्या के बाल परमेश्वर से इतना वरदान प्राप्त किया था कि वे दैत्यों और राक्षसों को भी चुनौती दे सकते थे।

विश्वामित्र का जन्म एक राजपुरोहित के घर में हुआ था। वे बाल्यकाल से ही ध्यान और तपस्या में रत थे। उनकी मां ने उन्हें धर्म, त्याग, और सत्य के महत्व के बारे में शिक्षा दी थी। विश्वामित्र ने अपनी मां की शिक्षा का पालन किया और उन्होंने ऋषि बनने का संकल्प बना लिया।

विश्वामित्र की शक्तियों और तपस्या के बारे में सबको ज्ञान हो गया था। एक बार वे राजा जनक के यज्ञ को नष्ट करने वाले राक्षस तड़का के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए देखे गए। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया और तड़का को पराजित कर दिया। इसके बाद से विश्वामित्र की मान्यता और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

विश्वामित्र को एक और महत्वपूर्ण कार्य देने के लिए राजा जनक ने उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित किया। वह कार्य था स्वयंवर में धनुष तोड़ने का। स्वयंवर में शानदा नामक देवी धनुष उठाने वाले वीर श्रीराम को अपनी पत्नी बनाने का प्रतिश्रवण किया गया था। विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ स्वयंवर में गए और वहां उन्होंने राम को धनुष तोड़ने के लिए प्रेरित किया। राम ने धनुष तोड़ दिया और शानदा को जीता लिया। यह घटना विश्वामित्र के लिए बहुत गर्व की बात थी।

विश्वामित्र के पश्चात् राम को गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने का निमंत्रण मिला। राम और लक्ष्मण ने उसे स्वीकार कर लिया और वे विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में गए। आश्रम में विश्वामित्र ने राम को वेद, धर्म, युद्ध, और अन्य ज्ञान की शिक्षा दी। राम ने उनकी शिक्षा को गहराई से समझा और उनके मार्गदर्शन में उनका आदर्श बनाया।

विश्वामित्र के साथ बिताए दिन राम और लक्ष्मण के लिए अनुभवमय और सीखदायक रहे। विश्वामित्र ने उन्हें विभिन्न राक्षसों और दुष्ट शक्तियों से लड़ने की कला सिखाई और उन्हें योग्यता और धैर्य के साथ लड़ाई लड़ने का अभ्यास कराया। विश्वामित्र की मार्गदर्शन में राम ने अनेक दुष्ट राक्षसों को विजयी किया और उनकी शक्तियों को नष्ट किया।

विश्वामित्र राम को न शिर्षासन की कला, न सचेतता, और नींद के समय कौन से आश्रय स्थल में सोना चाहिए, जैसे की तपस्या के दौरान आपको ध्यान और सचेत रहना चाहिए। विश्वामित्र ने राम को अनेक उपयोगी वरदान दिए जैसे की ब्रह्मास्त्र और शक्ति अस्त्र।

मुनि विश्वामित्र रामायण के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक हैं और उनका चरित्र विशेष रूप से उनकी शक्तियों, तपस्या और गुरुत्व के कारण प्रमुख बन गया है। उनकी सीख और मार्गदर्शन से राम ने अनेक संघर्षों का सामना किया और अद्वितीय वीरता प्रदर्शित की। विश्वामित्र का परिचय महारामायण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उनका चरित्र धर्म, त्याग, और सत्य के मार्ग का प्रतिष्ठान करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

News Feed

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.