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श्रीराम मंदिर, अयोध्या - Shri Ram Mandir, Ayodhya
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The Incredible Story of Lord Ram

रामायण : मेघनाद यज्ञ विध्वंस। लक्ष्मण मेघनाद युद्ध।

रामायण : Episode 70

मेघनाद यज्ञ विध्वंस। लक्ष्मण मेघनाद युद्ध।

सुषेण वैद्य हनुमान से द्रोणागिरी पर्वत को उसके स्थान पर पुनर्स्थापित करने को कहते हैं। अयोध्या में उर्मिला मन्दिर के बुझते दीपक पुनः जलते देखकर शंकामुक्त होती है। अशोक वाटिका में सीता को लक्ष्मण के ठीक होने की सुखद सूचना मिलती है। रावण कालनेमि की असफलता पर अत्यन्त क्रोधित है। मेघनाद एक गुप्त स्थान से देवी निकुम्भला को प्रसन्न करने के लिये यज्ञ का आयोजन करता है ताकि देवी से दिव्य रथ प्राप्त कर सके और उसपर सवार होकर युद्ध कर सके। भरत ध्यान लगाकर राम को मानस सन्देश भेजते हैं कि उन्हें युद्ध में शामिल होने हेतु आने की आज्ञा दें। राम सन्देश को प्राप्त करते हैं किन्तु भरत को आने से मना करते हैं। तभी विभीषण आकर उन्हें बताते हैं कि मेघनाद देवी निकुम्भला का यज्ञ कर रहा है, यदि यह यज्ञ पूर्ण हो गया तो उसकी ज्वाला से एक दिव्य रथ प्रकट होगा जिस पर आरूढ़ होने के पश्चात उसे कोई परास्त नहीं कर सकता है। विभीषण कथा सुनाते हैं कि एक बार इन्द्र ने रावण को बन्दी बना लिया था। तब मेघनाद ने अदृश्य होकर न केवल रावण को मुक्त करा लिया बल्कि इन्द्र को बन्दी बनाकर लंका ले आया। इन्द्र को मुक्त कराने के बदले में भगवान ब्रह्मा ने मेघनाद को वरदान दिया था कि जब भी वह अपनी कुलदेवी निकुम्भला का यज्ञ करेगा, उसे एक दिव्य रथ और ब्रह्मश्री नामक अस्त्र प्राप्त होगा। जब वह इस रथ पर आरूढ़ होगा, उसे कोई मार नहीं सकेगा। किन्तु ब्रह्मा इसमें एक शर्त भी लगायी थी कि यदि यज्ञ पूर्ण होने से पहले उसका कोई शत्रु देवी के गुप्त स्थान तक पहुँच गया तो वो ही उसका वध करेगा। विभीषण यह भेद राम लक्ष्मण को देते हुए कहते हैं कि मेघनाद को मारने का यही उपाय है कि उसके यज्ञ को विध्वंस कर दिया जाये। राम लक्ष्मण को यज्ञ विध्वंस की आज्ञा देते हैं। गुप्त यज्ञ स्थल तक का मार्ग बताने के लिये विभीषण साथ जाते हैं। यज्ञ स्थल की सुरक्षा के लिये तैनात असुर सैनिकों पर वानर सेना टूट पड़ती है। सुरक्षा दीवार टूटती है, हनुमान और अंगद यज्ञ में विघ्न डालने का प्रयास करते हैं किन्तु मेघनाद अपने आसन से नहीं हिलता है। आखिरकार हनुमान पानी डालकर यज्ञ अग्नि बुझा देते हैं। विभीषण लक्ष्मण को देवी निकुम्भला की गुफा के समीप स्थित बरगद के वृक्ष तक ले जाते हैं और भेद देते हैं कि मेघनाद युद्ध में जाने से पहले इस स्थान पर भूतों की बलि देता है। इससे उसे रणभूमि में अपने शत्रुओं को बन्दी बनाने की क्षमता हासिल होती है। विभीषण लक्ष्मण से मेघनाद की यह तान्त्रिक क्रिया भी पूर्ण होने से रोकने को कहते हैं। मेघनाद विभीषण को देखकर समझ जाता है कि देवी निकुम्भला का यज्ञ उसके कारण ही विध्वंस हुआ है। वह विभीषण चाचा को सन्तानहन्ता कहकर लक्ष्मण से पहले उसे मारने की घोषणा करते है। मेघनाद विभीषण पर लक्ष्य साधकर यमास्त्र चलाता है लेकिन गन्धर्वराज कुबेर पहले ही इस अस्त्र के तोड़ की विधि लक्ष्मण को बता चुके थे सो लक्ष्मण इससे विभीषण की रक्षा करते हैं। इसके पश्चात मेघनाद लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र चलाता है। ब्रह्मास्त्र के निकट आने पर लक्ष्मण सिर झुकाकर उसे प्रणाम करते हैं। ब्रह्मास्त्र वापस चला जाता है। इस माया को मेघनाद समझ नहीं पाता। वह अपने धनुष पर पाशुपत अस्त्र का संघान करता है किन्तु भगवान शिव का यह अस्त्र भी लक्ष्मण का प्रणाम स्वीकार कर वापस लौट जाता है। मेघनाद परेशान हो उठता है। वह अबकी बार नारायण अस्त्र चलाता है किन्तु लक्ष्मण तो शेषावतार हैं। नारायण अस्त्र उनकी प्रदक्षिणा करके लौट जाता है। मेघनाद को अब रण छोड़ने में ही अपनी भलाई दिखती है। वह अन्तर्धान हो जाता है। विभीषण लक्ष्मण से सावधान रहने को कहते हैं।

रामायण के प्रसिद्ध पात्र

Sage Vasishta - मुनि वसिष्ठ

मुनि वसिष्ठ रामायण महाकाव्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। वह एक प्रमुख ऋषि हैं और वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण के कथानक में महाराज दशरथ के परिवार के गुरु बने हुए हैं। मुनि वसिष्ठ एक पूर्वज ब्रह्मा जी के मनस्पुत्र और सृष्टि के पिता हैं। वे ब्रह्मा जी के आदेश पर आकाशगंगा से उत्पन्न हुए थे।

मुनि वसिष्ठ एक अत्यंत ज्ञानी और साधु ऋषि हैं। उन्होंने अनेकों शिष्यों को ज्ञान और आध्यात्मिकता की शिक्षा दी है। वे शान्तिपूर्ण, धर्मात्मा, और न्यायप्रिय हैं। मुनि वसिष्ठ का आदर्श जीवन और आचरण उन्हें एक प्रमुख आचार्य बनाता है। उन्होंने सत्य, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलने का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

मुनि वसिष्ठ का शरीर और मन शुद्ध और पवित्र है। वे संतानों के सच्चे पिता के रूप में माने जाते हैं। उनकी महानता और तपस्या ने उन्हें देवर्षि के रूप में प्रस्तुत किया है। मुनि वसिष्ठ को दिव्य दृष्टि है और वे भूत, भविष्य और वर्तमान की ज्ञानी हैं।

मुनि वसिष्ठ ने महाराज दशरथ को धर्म का अच्छा पालन करने की सलाह दी और उन्हें वेदों का ज्ञान दिया। वे राजा के मन्त्री हैं और राजनीतिक मामलों में महाराज की सलाह देते हैं। उनके अद्वितीय बुद्धि और न्यायप्रिय मतों के कारण उन्हें राजा और प्रजा का आदर्श आचार्य माना जाता है।

मुनि वसिष्ठ के आध्यात्मिक शिष्यों में से एक थे राजा हरिष्चंद्र और उन्होंने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश दिया। मुनि वसिष्ठ का ज्ञान और अनुभव उन्हें आध्यात्मिक और लोकाचार सम्प्रदाय का समझदार और अच्छा नेतृत्व करने में मदद करता है।

मुनि वसिष्ठ एक परम ऋषि होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ गुरु भी हैं। उनके पास अद्वितीय ज्ञान, आध्यात्मिक शक्ति और तत्त्वज्ञान की अमूल्य धारा है। मुनि वसिष्ठ ने श्री राम को शास्त्रों का ज्ञान और सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। उनकी आध्यात्मिक शिक्षा ने श्री राम को धार्मिक और मानवीय मूल्यों का समझने में मदद की।

मुनि वसिष्ठ ने अपने जीवन में अनेक यज्ञ और तप किए हैं। उन्होंने देवताओं के लिए हवन और पूजा की विधि का ज्ञान प्राप्त किया है। वे तपस्या और आध्यात्मिक साधना में प्रवीण थे और इसलिए देवर्षि के रूप में अत्यधिक प्रशंसा प्राप्त करते हैं।

मुनि वसिष्ठ एक अत्यंत गर्वित और विनम्र व्यक्ति हैं। उनके प्रति लोगों का सम्मान और आदर्शन अपार है। उनका विचारधारा और उपदेश लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। उनका प्रतिष्ठान पूरे ऋषि समुदाय में उच्च है और उन्हें आदर्श ऋषि का दर्जा प्राप्त है।

यथार्थ में, मुनि वसिष्ठ एक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उनकी सच्ची भक्ति, न्यायप्रिय मतभेद और आध्यात्मिक शक्ति उन्हें अद्वितीय बनाती हैं। उनका चरित्र और आचरण लोगों के मन, विचार और जीवन को प्रभावित करता है।

यहां तक कि आज भी, मुनि वसिष्ठ का चरित्र और जीवन लोगों के द्वारा मान्यता प्राप्त करते हैं और उन्हें एक महान आध्यात्मिक गुरु के रूप में स्मरण किया जाता है। उनका योगदान रामायण की कथा में महत्वपूर्ण है और उन्होंने श्री राम को आध्यात्मिक और धार्मिक राजनीति का ज्ञान दिया है।

समर्पित ऋषि और आचार्य के रूप में, मुनि वसिष्ठ ने लोगों को धार्मिकता, सत्य, न्याय और आध्यात्मिकता के मार्ग पर प्रेरित किया है। उनकी गहन ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभव से लोगों को मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान मिला है। वे एक महान व्यक्ति हैं जिनका योगदान रामायण के कथानक को आध्यात्मिक और धार्मिक रूप में संपूर्ण करता है।



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|| सिया राम जय राम जय जय राम ||

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2024 में होगी भव्य प्राण प्रतिष्ठा

श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा किया जाना था. अब मंदिर ट्रस्ट ने साफ किया है कि उन्होंने अब इसके लिए जो समय सीमा तय की है वह दो माह पहले यानि अक्टूबर 2023 की है, जिससे जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही भव्य और दिव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके.

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रामायण कालीन चित्रकारी होगी

राम मंदिर की खूबसूरती की बात करे तो खंभों पर शानदार नक्काशी तो होगी ही. इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ परकोटे में भी रामायण कालीन चित्रकारी होगी और मंदिर की फर्श पर भी कालीननुमा बेहतरीन चित्रकारी होगी. इस पर भी काम चल रहा है. चित्रकारी पूरी होने लके बाद, नक्काशी के बाद फर्श के पत्थरों को रामजन्मभूमि परिसर स्थित निर्माण स्थल तक लाया जाएगा.

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अयोध्या से नेपाल के जनकपुर के बीच ट्रेन

भारतीय रेलवे अयोध्या और नेपाल के बीच जनकपुर तीर्थस्थलों को जोड़ने वाले मार्ग पर अगले महीने ‘भारत गौरव पर्यटक ट्रेन’ चलाएगा. रेलवे ने बयान जारी करते हुए बताया, " श्री राम जानकी यात्रा अयोध्या से जनकपुर के बीच 17 फरवरी को दिल्ली से शुरू होगी. यात्रा के दौरान अयोध्या, सीतामढ़ी और प्रयागराज में ट्रेन के ठहराव के दौरान इन स्थलों की यात्रा होगी.